श्री पुष्पदंत जी अर्घ | Shree Pushpdant Ji Argh
जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय ।
तुम पद पूजौं प्रीति लाय के, जय जय त्रिभुवनराय ।।
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी अरज सनीजे ।।
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
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श्री पुष्पदंत जी अर्घ | Shree Pushpdant Ji Argh
Reviewed by Prince Jain
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