Shri Aadinath Bhagwan Ji Argh | श्री आदिनाथ जी अर्घ
शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरु ले मन हर्षाय,
दीप धुप फल अर्घ सुलेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ।
श्री आदिनाथ के चरण कमल पर बलि बलि जाऊ मन वच काय,
हे करुणानिधि भव दुःख मेटो, यातै मैं पूजों प्रभु पाय ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्ताये अर्घं निर्वपामिति स्वाहा
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Shri Aadinath Bhagwan Ji Argh | श्री आदिनाथ जी अर्घ
Reviewed by Prashant Jain
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09:25:00
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