Shri Sambhavnath Bhagwan Ji Argh श्री सम्भवनाथ भगवान् जी अर्घ
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ किया ।
तुमको अरपौं भाव भगतिधर, जै जै जै शिव रमनि पिया ।।
संभव जिन के चरन चरचतें, सब आकुलता मिट जावे ।
निज निधि ज्ञान दरश सुख वीरज, निराबाध भविजन पावे ।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
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Shri Sambhavnath Bhagwan Ji Argh श्री सम्भवनाथ भगवान् जी अर्घ
Reviewed by Prashant Jain
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09:49:00
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