Shri Sumtinath ji Argh | श्री सुमतिनाथ जी अर्घ
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु दीप धूप फल सकल मिलाय ।
नाचि राचि शिरनाय समरचौं, जय जय जय 2 जिनराय ।।
हरिहर वंदित पापनिकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवनके राय ।
तुम पद पद्म सद्म शिवदायक, जजत मुदितमन उदित सुभाय ।।
ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
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Shri Sumtinath ji Argh | श्री सुमतिनाथ जी अर्घ
Reviewed by Prashant Jain
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09:20:00
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